Qurbani Ka Tarika | Qurbani Karne Ke Masail aur Fazilat | क़ुरबानी का तरीक़ा

Qurbani Ka Tarika aur Dua in Hindi: अस्सलामु अलैकुम आज की इस पोस्ट में हम आप लोगों को Qurbani Ka Tarika हिंदी में बता रहे है। क़ुरबानी की दुआ, क़ुरबानी का तरीक़ा और फ़ज़ीलत क़ुरआन मजीद और सही हदीस से जो साबित है वही आप लोगों को बताएंग।

Qurbani Ka Tarika

अशरा ज़ुल हिज्जा की बड़ी फ़ज़ीलत है इसमें बड़े बड़े आमाल किये जाते है, इन आमाल में एक बहुत ही बड़ा अमल अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की क़ुरबत और उसकी रज़ा मंदी की निय्यत से क़ुरबानी करना है। क़ुरबानी जानवर ज़बह करने और गोश्त खाने का नाम नहीं है क़ुरबानी का असल मक़सद तक़वा है। इसलिए क़ुरबानी करने वालों को अपनी निय्यत खालिस रखना चाहिए Qurbani Ka Tarika in Hindi।

अल्लाह तआला क़ुरआन मजीद में फ़रमाता है।

तरजुमा: अल्लाह तक तुम्हारी क़ुरबानी का गोश्त या खून हर गिज़ नहीं पहुँचता बल्कि तुम्हारा तक़वा पहुँचता है।

(सूरह हज: 37)

हदीस: नबी करीम सलालहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया

तर्जुमा: बेशक अल्लाह तुम्हारे जिस्मो  और तुम्हारी सूरतों को नहीं देखता बल्कि तुम्हारे दिलो को देखता है।

(सहीह मुस्लिम: 2564)

Qurbani Ka Tarika

ज़मीन पर जानवर को क़िब्ला रुख लिटाकर तेज़ छुरी उसकी गर्दन पर चलाते हुए बोले بسم اللہ واللہ اکبر इतनी दुआ पढ़ना भी काफी है।

निय्यत का तालुक दिल से है ये दुआ भी कर सकते है

कुर्बानी का तरीका और दुआ

بِسْمِ اللهِ وَاللهُ أَكْبَرْ أَللهُمَّ هٰذَا مِنْكَ وَلَكَ اَللّٰھُم َّھٰذَا عَنِّيْ وَ عْن أهْلِ بَيْتِيْ

Qurbani Ki Dua

बिस्मिल्लाह, वल्लाहु अकबर अल्लाहुम्मा हाज़ा मिनका व लका अल्लाहुम्मा हाज़ा अन्नी व अन अहलि बैती

निचे दी गई दुआ भी सुन्नत से साबित है

Qurbani Karne Ki Dua in Arabic

إنِّي وَجَّهْتُ وَجْهِيَ لِلَّذِي فَطَرَالسَّمَاْوَاتِ وَاْلأَرْضِ حَنِيْفًا وَمَاْأَنَاْمِنَ الْمُشْرِكِيْنَ، إِنَّ صَلاْتِيْ وَنُسُكِيْ وَمَحْيَاْيَ وَمَمَاتِيْ لِلّٰهِ رَبِّ اْلعَاْلَمِيْنَ، لَاْشَرِيْكَ لَه’وَبِذالِكَ أُمِرْتُ وَأَنَاْ مِنَ الْمُسْلِمِيْنَ، بِاسْمِ اللهِ وَاللهُ أَكْبَرْ أَللهُمَّ هَذا مِنْكَ وَلَكَ أَللهُمَّ تَقَبَّلْ مِنِّيْ (وَمِنْ أَهْلِ بَيْتِيْ)

Bakra Zibah Karne Ki Dua in Hindi

इन्नी वज्जहतु वाजहि-य लिल्लज़ी फ़-त-रस-समावाती वलअरज़ि  हनीफौ वमा अ-न मिनल मुशरिकीन, इन्न सलाती व नुसुकी व महया-य व-मामाती लिल्लाहि रब्बिल आलमीन, लाशरी-क लहू व बि-ज़ालिक उमिरतु व अना मिनल मुस्लिमीन, बिस्मिल्लाहि वल्लाहु अकबर अल्लाहुम्म हाज़ा मिन-क व ल-क अल्लाहुम्म तक़ब्बल मिन्नी (व मिन अहलि बैती)

मसला: ज़बह करने वाला आक़िल व बालिग़ मुस्लमान हो, किसी खून बहाने वाले आला से ज़बह किया जाए, ज़बह में गला यानि साँस की नली और खाने की राजन कांटनी है। और ज़बह करते वक़्त अल्लाह का नाम लेना है।

Qurbani Ka Waqt

क़ुरबनी का वक़्त ईदुल अज़हा की नमाज़ के फ़ौरन बाद शुरू होजाता है

हदीस: बराअ बिन आज़िब रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने बयान किया के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ईदुल अज़हा की नमाज़ के बाद ख़ुतबा देते हुए फ़रमाया: जिस शख्स ने हमारी नमाज़ की तरह नमाज़ पढ़ी और हमारी क़ुरबानी की तरह क़ुरबानी की उस की क़ुरबानी सही हुई लेकिन जो शख्स नमाज़ से पहले क़ुरबानी करे वो नमाज़ से पहले ही गोश्त खाता है मगर वो क़ुरबानी नहीं।

(सही बुख़ारी: 955)

इस हदीस से पता चला के ईद की नमाज़ से पहले क़ुरबानी सही नहीं है ईद की नमाज़ के बाद ही क़ुरबानी का हुक्म है।

क़ुरबानी का जानवर ज़बह करने के आदाब और तरीक़ा

जानवर को ज़बह करते वक़्त क़िब्ला रुख लिटाया जाए ये सुन्नत है। अगर गैर क़िब्ला रुख पर ज़बह करलिया गया हो तो भी कोई हरज नहीं जिसकी तरफ़ से क़ुरबानी की जारही वो ख़ुद ज़बह करे अगर ख़ुद ज़बह करना मुश्किल हो तो कोई दूसरा भी ज़बह करसकता है।

जब जानवर ज़बह करने लगे तो छुरी को तेज़ करलें ताके जानवर को ज़बह करते वक़्त कम से कम तकलीफ महसूस हो।

Qurbani Ke Gosht Ki Taqseem

क़ुरबानी का गोश्त तीन (3) हिस्सों में तक़सीम करना ज़रूरी नहीं है बल्कि मुस्तहब है कियुँकि क़ुरबानी का गोश्त असल खाना और खिलाना है, बचे हुए गोश्त को ज़खीरा करने में भी कोई हरज नहीं।

क़ुरबानी का हुक्म

क़ुरबनी के हुक्म में एहले इल्म के दरमियान इख़्तिलाफ़ पाया जाता है। इमाम अबू हनीफ़ा को छोड़ कर बाक़ी अइम्मए सलासा और जमहूर एहले इल्म से सुन्नते मोकीदा होना साबित है।

Qurbani Ki Fazilat

क़ुरबानी इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने इसे बाद में आने वाले तमाम लोगों के लिए भी बाकि रकह है।

अल्लाह पाक का क़ुरआन शरीफ़ में इरशाद है

وَتَرَكْنَا عَلَيْهِ فِي الْاٰخِرِيْنَ

तर्जुमा: और हम ने इस (क़ुरबानी) को बाद वालों के लिए बाकिर रखा।

(अल-साफ़्फ़ात: 108)

ज़ुल-हिज्जा के दस (10) दिन अल्लाह तआला को बेहद अज़ीज़ है, इन अय्याम में अंजाम दिया जाने वाला हर नेक काम अल्लाह रब्बुल आलमीन को पसंद है, इनमे एक बेहतरीन और महबूब अमल क़ुरबानी भी है।

हदीस 1: नबी करीम सल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: अल्लाह तबारक व तआला के नज़दीक सब से अज़ीम दिन यौमून-नहर (यानि क़ुरबानी का दिन) और यौमुल-क़ुर (मिना में हाजियो के ठहरने ने का दिन) है।

(सही अल-जामे: 1064)

हदीस 2: एक हदीस में है के: दुनया के अफ़ज़ल दिनों में ज़ुल-हिज्जा के शुरू के दस (10) दिन अफ़ज़ल है. (सही अल-जामे: 1133)

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Qurbani Ki Hikmat

क़ुरबानी की बहुत सारी हिकमतें है। इन सभी हिकमतों में सब से एहम तरीन हिकमत तक़वा और अल्लाह का तक़र्रुब हासिल करना है।

अल्लाह तआला का क़ुरआन पाक में इरशाद है

قُلْ إِنَّ صَلاَتِيْ وَنُسُكِيْ وَمَحْيَايَ وَمَمَاتِيْ لِلّٰهِ رَبِّ الْعَالَمِيْنَ

तर्जुमा: आप फ़रमा दीजिये के बेशक मेरी नमाज़, मेरी क़ुरबानी, मेरा जीना और मेरा मरना सब खालिस अल्लाह रब्बुल आलमीन ही के लिए है जो सारे जहान का मालिक है।

(अल-अनआम: 162)

क़ुरबानी करने वाले ये चीज़े ना करें

जो कोई भी क़ुरबानी का इरादा करे वो एक ज़ुल-हिज्जा से क़ुरबानी का जानवर ज़बह होने तक अपने बाल और नाख़ून न काटे।

हदीस: रसूलुल्लाह सल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: जब ज़ुल-हिज्जा का अशरा शुरू होजाए और किसी के पास जानवर हो जो उसकी क़ुरबानी देना चाहता हो तो जब तक क़ुरबानी ना करे तब तक बाल और नाख़ून ना काटें।

(सहीह मुस्लिम: 1977)

बाल और नाख़ून के काटने से मुताल्लिक़ ये जानलें के ये पाबन्दी सिर्फ़ क़ुरबानी करने वालों की तरफ से है लेकिन सभी पाबन्दी करना चाहे तो अच्छी बात है।

दूसरी बात ये है के वो शख्स जिसने ग़फ़लत में चालीस दिनों से बाल और नाख़ून नहीं कटा था और उसको क़ुरबानी देनी है और अब ज़ुल-हिज्जा का चाँद निकल आया तो ऐसा शख्स बहुत बड़ा गाफिल है। अगर बाल और नाख़ून ज़ियादा बढ़गए और तकलीफ़ देरहे है तो काटलें, अल्लाह रब्बुल आलमीन मुआफ करने वाला है वर्ण छोरदे।

मसला: क़ुरबानी देने वाले ने भूलकर बाल या फिर नाख़ून काटलिया तो उस पर कोई गुनाह नहीं होगा लेकिन अगर किसी ने जानबूझ कर काटा तो तोबा करना लाज़िम होगा।

Qurbani Ke Janwar Ka Masla

8 क़िस्म के जानवरों की क़ुरबानी जाइज़ है इनमें बकरी, भेड़, गाए और ऊँट का नर और मादा दोनों शामिल है। क़ुरबानी के इन जानवरों में चार (4) क़िस्म के उयूब नहीं होना चाहिए।

हदीस: नबी अकरम صلى الله عليه وسلم का इरशाद है: चार (4) क़िस्म के जानवर क़ुरबानी में जाइज़ नहीं: काना जिसका काना पन ज़ाहिर हो, लंगड़ा जिसका लंगड़ा पन वाज़िह हो, मरीज़ जिसका मर्ज़ वाज़िह हो और इतना कमज़ोर जानवर के उसमे गुदा तक ना हो।

(सही निसाई: 4383)

मसला 1: इस हदीस से पता चलता है के क़ुरबानी का जानवर ताक़तवर और सेहत मंद हो। गाभन और दूध देने वाले जानवरो की क़ुरबानी जाइज़ है । जानवर खरीदने के बाद उस जानवर में कोई ेअब होजाए जैसे सींग, टांग, दांत या हडडी टूट जाए, कान कट जाए या मरीज़ होजाए तो उसकी क़ुरबानी की जासकती है। अगर कोई शख्स दोबारा खरीदने की ताक़त रखता है कियुंके हदीस में चार उयूब में से कोई एब खरीदने के बाद पैदाहो जाए तो ख़रीदलें।.

मसला 2: क़ुरबानी के लिए चुना हुवा जानवर हदया करना या गिरवी रखना जाइज़ नहीं है और क़ुरबानी के जानवर को बारबरदारी के तौर पर इस्तेमाल करना भी जाइज़ नहीं है।

मसला 3: क़ुरबानी का जानवर मुसिन्ना (दांता) होना चाहिए, मुसिन्ना ऐसे जानवर को कहते है जिसके दूध के अगले 2 दांत टूट कर वापस निकल आए हो।

किया क़ुरबानी का एक जानवर पुरे घर की तरफ से काफ़ी है

क़ुरबानी का एक जानवर चाहे वो बकरा या फिर बकरी ही कियु ना हो एक घराने के पुरे अफ़राद की तरफ़ से काफी है। एक घराने का मतलब ये के घर में रहने वाले सभी लोग क़ुरबानी करने वाले के साथ ही रहते हो और क़ुरबानी करने वाला उन सबके खर्च का ज़ुम्मेदर हो साथ ही वो सरे रिश्तेदार हो। जिसका चूल्हा अलग हो वो अलग क़ुरबानी करेगा।

हदीस: अता बिन यासर कहते है के मेने अबू अय्यूब अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछा: अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़माने में क़ुरबानी कैसे होती थी? उन्होंने कहा: एक आदमी अपनी और अपने घर वालों की तरफ़ से एक बकरी क़ुरबानी करता था, वो लोग खुद खाते थे और दुसरो को खिलाते थे यहाँ तक के लोग (कसरत क़ुरबनी पर) फ़ख़्र करने लगे और अब ये सुरते हाल होगी जो देख रहे हो

(सही तिर्मिज़ी: 1505)

Bade Janwar Me Hissa

बड़े जानवर में 7 लोग या 7 घरानो के लोग एक एक हिस्सा लेकर क़ुरबानी में शरीक हो सकते है।

हदीस: जाबिर अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते है: हज के मोके पर हम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ थे और हम एक ऊँट में 7 आदमी शामिल हुए एक शख्स ने जाबिर रज़ियालहु अन्हु से दरयाफ्त क्या, किया गए में भी 7 आदमी शरीक होसकते है? तो जाबिर रज़ियालहु अन्हु ने कहा के गए भी इसके हुक्म में है।

Musafir Ki Qurbani

मुसाफ़िर चलते सफ़र में क़ुरबानी दे सकता है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सफ़र में क़ुरबानी दी है।

हदीस: सोबान रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है के नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क़ुरबानी का एक जानवर ज़बह करके फ़रमाया: सोबान इसके गोश्त को दुरुस्त करलो यानि साथ ले जाने के लिए तय्यार करलो। फिर में वो गोश्त आप को खिलता रहा यहाँ तक के आप मदीनह तशरीफ़ ले आए।

क़ुरबानी के तअल्लुक़ से कुछ ज़रूरी बातें

  • जानवर को ज़बह करने के लिए Qurbani Ka Tarika aur Qurbani Ki Dua मालूम होना चाहिए
  • क़ुरबानी के जानवरों की फ़ज़ीलत के बारे में कोई सही हदीस साबित नहीं है।
  • क़ुरबानी के वाजिब होने के लिए लोगों में जो ज़कात का निसाब मशहूर है वो साबित नहीं है। बस इतना है के क़ुरबानी के लिए जानवर खरीदने की ताक़त हो।
  • क़ुरबानी का जानवर ज़बह करने के बजाए इसकी रक़म सदक़ा करना सही नहीं है और नाही क़ुरबानी के जानवर का गोश्त या खाल बेचीं जाए।
  • क़ुरबानी का गोश्त कसाई को उजरत में देना भी सही नहीं है।
  • हज की क़ुरबानी और ईद की क़ुरबानी दोनों अलग अलग है दोनों क़ुरबानी को एक समझना गलत है।

Surah in Hindi

Surah Fatiha in Hindi सूरह फातिहा
Surah Naas in Hindi सूरह नास
Surah Falaq in Hindi सूरह फ़लक़
Surah Yaseen in Hindi सूरह यासीन
Surah Yaseen in Roman English सूरह यासीन इंग्लिश में

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